साथी कमला प्रसाद से मिला था मैं भी दो-चार बार उनके मिलने-जुलने बात करने के याराना ढब में ही था वो जादू कि जादू विचार की गर्माहट का कि हम बन जाते थे उनके करीबी !
हिंदी समय में चंद्रेश्वर की रचनाएँ